Posts Tagged ‘Poetry’
फिरदोस….
Posted February 8, 2009
on:उनकी मु्स्कराहट, हमारे मासूम नतीजे,
थी जन्नत की चाहत, मिले दोजख के छींटे |
और लोग कहते खुदगर्जी इसे, खुदा देखता है……
गर ना हम होते शायर, तो अच्छा था,
दास्तान-ऐ-आशिकी तो न यूँ बयाँ करते |
छुपाने से जो चुप जाए वो मोहब्बत क्या है…………
मनु
जल्द ही आएगा वो दिन…
Posted February 7, 2009
on:- In: Life | Poetry
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जल्द ही आएगा वो दिन,
बैठेंगे साथ हम दोनों…..
कुछ तुम अपनी सुनाना,
कुछ में अपनी बताऊंगा ….
आखों में होगी सिर्फ़ तुम,
और में जागते हुए सपने सजाऊंगा..
हाथों में तब दे देना हाथ तुम अपना,
और तुम्हारी खुशबू से में मन को भीगाउंगा ….
खामोश रह कर भी कह दूंगा सब,
जो कह न पाया हूँ अब तक, वह बानगी सुनाऊंगा …
कभी हो जो जाओगी नाराज तुम,
लगा कर अपने सीने से दिल की धड़कन सुनाऊंगा ..
तुम्हारी मुश्कराहट की बदली में ,
आस की बारिश बुलाउंगा…
बस तुम रहना सदा पास मेरे,
धुप, छाव, बारिश सब सह जाऊंगा…
जल्द ही आएगा वो दिन,
बैठेंगे साथ हम दोनों…..
कुछ तुम अपनी सुनाना,
कुछ में अपनी बताऊंगा ….
मनु
कुछ लम्हें त्रिवेणी के साथ………
Posted July 28, 2008
on:- In: Life | Poetry | triveni
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कुछ लम्हें त्रिवेणी के साथ………
समेटी है आज कुछ बिख्ररी यादों की कतरने,
कुछ मीठे सपनो की रातें, मु्स्कराहटों का कोना |
शब की दहलीज पर ढूढां करता हूं, रोशनी मैं…..
दिल की दीवारों का भी है अजब आलम,
परतें उखड़ती हैं पर रंग उतरता ही नही |
इस घर के दरवाजे पर ताला जो लगा है…….
मीठी सुबह मै उड़ती ये नमकीन खुशबू,
जिलाती है अह्सास उनके पास होने का |
कि बेखब्रर सोने का भी अपना इक मजां है……
-मनु
Raajniti… राजनीति ..
Posted July 28, 2008
on:राजनीति
इक दिन हमने सोचा चलो राजनीति पर कुछ लिखा जाये,
सभी तलवारें चलाते है इसमे, अपनी कलम को भी परखा जाये |
कुछ सोच ही रहा था, कि इक मोहिनी ने टी.वी. पर समाचार सुनाया,
कुछ इस प्रकार था, एक छोटे से पत्रकार ने बहुत बड़ा तहलका मचाया
मन मै इक गून्ज उठी, यह भी कोई बड़ा समाचार है,
हमारे यहाँ तो चारा खाने वालो की बेहिसाब भरमार है |
तारकोल, बोफोर्स हो या हो यूरीया सब का सब डकार जाते है,
जनता को बिल्लियों की भातिँ लडा यहां बन्दर रोटी खाते है |
हिंसा मूल मन्त्र है इनका, लालच करना जन्मसिद्ध अधिकार है,
कुर्सी के द्वुन्द मैं यहाँ, हर कोई मरने मारने को तैयार है |
यहाँ अनपढ, असभ्य, अयोग्य भी मन्त्री बन जाते है,
विकास कराने की दौड मैं जनता को ही पीछे छोड जाते है |
भ्रष्टाचार कि स्याही से लिखी जाती है अपराध कि कहानी,
जेल को घर समझ जाने वालो की जय जयकार है |
धन, बल, यश कि अविरल निरन्तर वर्षा होती है इसमें,
किसी ने सच ही कहा है, राजनीति सर्वोत्म व्यापार है |
-मनु
** Wrote this poem somewhere in 2002 during my early IIT days. After the recent filthy episode of parliament, I thought I’d share this crude version of poetry with you.
kuch aur Triveniya……….
Posted May 25, 2008
on:- In: Poetry | triveni
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कुछ और त्रिवेणीयाँ….
उनकी फिराक का ही तो हैं ये असर,
कि जा पहुचें हैं उनके और करीब |
शुक्र फासिल का मनायें तो क्या गलत है…
ki ja pahunche hai unke aur kareeb
हर दामन-ऍ-मिज्गा मै दर्द की आह है,
कहीं छुपी हुइ तो कही बेपरदा बेराह है |
कि मौसम-ए-मिजाज ही करवाता है बारिश….
kahi chupi hui to kahi be-parda be-rah hai
जो ना हो्ता जवाब तुम्हारे सवालों का
चैंन की नीँद हम युं ना तरसा करते |
ये तो हालात की आंधी है कि बहती ही नही………
chain ki neend hum u na tarsa kurte
दास्तान-ए-हसरत से सनी ये जिन्दगी,
हिसाब-ए-सूद-ए-जियाँ मैं ही ढल गयी |
हर उथती मौँजो को दफन होना है समन्द्ऱ मै ही………
hisab-e-suud-o-ziyaan mein hi dhul gaye
मनु
गुफ्तुगू ….